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ज़हरीले बयानों की राजनीति

AMIR KHURSHEED MALIK
AMIR KHURSHEED MALIK
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ज़हरीले बयानों के ज़रिये ध्रुवीकरण की कोशिश हो , या बेहूदा बयानों से किसी के ज़ख्मों पर नमक छिड़कने की हरकत हो , सामूहिक निंदा की आवाज़ आनी ही चाहिए ।  गर्म होती फिजाओं के दरमियाँ समाज की साझा विरासत और अमन को नुकसान पहुंचाने की कोशिशों को नज़रंदाज़ करना मुनासिब नहीं है ।  सामान्य नागरिकों को उकसाने की यह कोशिशे लोकतंत्र की मूलभावना के खिलाफ है  ।  परन्तु अफ़सोस , वोट के फायदे के गणित के आगे सही-गलत का आंकलन बौना साबित हो रहा है ।  रही सही कसर चैनल की ब्रेकिंग न्यूज़ की लगातार चिल्लाती आवाज़ ने पूरी कर दी ।  इन सब चीजों से ध्रुवीकरण कितना हुआ या नहीं , यह बताना तो मुश्किल है ।  पर अमन के दरमियाँ कुछ नए नफरत के बीज बोने में यह कामयाब ज़रूर हो गए ।  जब बात  चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज़ में सुर्खियाँ पाने की हो तो कई नाम आगे आ जाते हैं ।  सो दे दिया एक विवादस्पद बयान और बन गई सुर्खियाँ ।

क्या इन नेताओं का मकसद सिर्फ दलीय राजनीति का परचम फहराना ही रह गया है ? जब देश आर्थिक विकास के दोराहे पर खड़ा हो कर किसी सशक्त नीति की आस देख रहा है , हमारे राजनीतिक दल सिर्फ सत्ता में आने के ख्वाब पाल कर जायज़-नाजायज़ के फर्क को अनदेखा कर हर रास्ता अपनाने को तैयार हैं । राजनीतिक दलों की सोच सिर्फ कुर्सी तक सीमित हो गई है , शायद वह सोचते हैं कि सत्ता पा लो । देश का तो बाद में सोचेंगे । जिस आज़ादी को हमने बड़ी-बड़ी कुर्बानियों के बाद हासिल किया है , उसकी कीमत का अंदाज़ा शायद इन लोगो को नहीं है। इन लोगो को यह समझाना जरुरी हो चला है कि आपके काम के साथ हम आपकी भाषा पर भी नज़र रखेंगे । ताकि यह लोग हमारे बीच कोई दरार पैदा करके स्वार्थ सिद्ध ना कर सके । देश को रचनात्मक प्रयासों की जरुरत है , ना कि ज़हर बूझे बयानों की । नफरत को इन ज़हरीले बयानों से हवा दी जा सकती है , तरक्की को नहीं । विकास ,अमन और चैन के दरमियाँ ही पनप सकता है , ज़हरीले बयानों के बीच नहीं  । और अब ज़िम्मेदारी हम सबके ऊपर है ।

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